Monday 6 July, 2009

आज की लड़की

ऐ जिंदगी! ऐ मेरी बेबसी! अपना कोई ना था, अपना कोई नहीं इस दुनिया में हाय...'' सैंकड़ों लोगों के बीच पड़ी मैं यही सोच रही थी। मेरे लिए लड़ने वाले इस अनजान लोगों की भीड़ में मैं कितनी अकेली हूं। मेरे लिए लड़ाई..
सुनकर आप लोगों को लग रहा होगा कि जरूर 'लड़की का कोई किस्सा या चक्कर होगा'। हंसी आती है मुझे ऐसी मानसिकता पर जहां 'लड़की' शब्द सुनते ही लोगों की नकारात्मक सोच उनके विकसित समझे जाने वाले व्यक्तित्व पर हावी हो जाती है। जाने क्यों हम लड़कियों को इसी सांचे में फिट किया जाता है? 21 वीं शताब्दी की इस पढ़ी लिखी, सुसंस्कृत, विस्तृत सोच वाली दुनिया के मानसिक विकास का दायरा इतना संकुचित क्यों है?
खैर! हम लड़कियों की अपने अस्तित्व की यह लड़ाई कभी न खत्म होने वाली है, न ही हमारे प्रश्नों का अंत है। और हमारे प्रश्नों का उत्तर इस समाज के पास नहीं है। सच कहूं तो मेरा यह प्रश्न इस समाज से पहले उस सृष्टा से है जो किसी जीव को सजा स्वरूप लड़की के रूप में पैदा होना निर्धारित करता है । एक तरफ लड़की को मां जैसे संवेदशील शब्द से भावुक किया जाता है, देवी के रूप में पूजा जाता है, बहन के रूप में प्यार किया जाता है, विभिन्न रूपों में सम्मान दिया जाता है वहीं दूसरी ओर उसी लड़की को तुच्छ दृष्टि से देखा जाता है, बदनीयती से उसका शोषण किया जाता है। उसके जन्म पर आंसू बहाये जाते है, पैदा होते ही घर में उदासी का ऐसा आलम छा जाता है कि जब तक वह लड़की एक घर से दूसरे घर तक नहीं पहुंचा दी जाती तब तक लड़की होने के ताने दिये जाते हैं। और अगले घर की जिंदगी.. इस जिंदगी से तो हर कोई वाकिफ है। समझ में नहीं आता हमारा अस्तित्व किससे जुड़ा है? उस पूजनीय रूप से या आज के इस कड़वे सच से। परन्तु यह तो तय है कि इन दोनों रूपों में से कोई एक हमें अवश्य छल रहा है।
छल! यह 'छल' हमारी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा बन गया है। पैदा होते ही मां-बाप के आंसू देखकर अहसास हुआ कि शायद मुझे इस दुनिया में देखकर खुशी के कारण मां-बाप की आंखों से ये अनमोल मोती गिर रहे है। शायद जो भाव वे शब्दों में बयां नहीं कर पा रहे, वे आंसुओं के रूप में प्रकट हो रहे है। मेरी भी इस दुनिया में आने की खुशी दुगनी हो गयी। परन्तु मेरी खुशी ने मुझे मेरी जिंदगी का पहला धोखा दिया। मेरा भ्रम मां-बाप के वो चार शब्द सुनते ही दूर हो गया जो मुझे दिल की गहराइयों तक छू गये, ''अरे ये तो लड़की है।''
जी हां, मैं तो एक लड़की थी। पता नहीं क्यों मैं मां-बाप के आंसुओं को देख भावनाओं के सूखे सागर में बह गई और जब उस सूखे सागर से बाहर आई तो मैं प्यासी ही रह गई। मां-बाप के पहले स्पर्श की प्यासी, उनके पहले दुलार की प्यासी, उनके पहले अहसास की प्यासी, मुझे छूने के लिए उनके कांपते हांथों की प्यासी, उनके पहले शब्द की प्यासी, उनके चेहरे की मुस्कराहट की प्यासी। प्यासी, क्योंकि मैं एक लड़की थी।
मुझे 'छल' शब्द से नफरत होने लगी थी। मैं 'छल' को कोस रही थी कि क्यों ये मेरी जिंदगी में आया। बहुत दुख होता है जब कोई अपनों से छला जाता है। पर जल्द ही मुझे पता लगा कि यह छल अब मेरी जिंदगी भर का साथी होने जा रहा है।
मैं कुछ घंटों की बच्ची मेरे मां-बाप पर भारी होने लगी थी। मेरे लड़की होने का गम वे और अधिक सहन नहीं कर पा रहे थे। तभी उन्हे एक कुटिल युक्ति सूझी। जिसे सुनकर किसी की भी रूह कांप उठे। किसी को भी अपने लड़की होने पर घृणा होने लगे। मां-बाप की बात सुनकर मुझे वास्तव में यकीन हो गया कि लड़की होना कितना बड़ा पाप है।
'पाप' ही तो है। यदि लड़की होने के कारण एक मां अपने कलेजे के टुकड़े को फेंकने के लिए तैयार हो जाये तो वास्तव में यह पाप ही है। जी हां, मेरे मां-बाप ने मुझे शहर से दूर कहीं फेंक देने की युक्ति सोची थी। कितने कष्टप्रद थे वे संवाद!
मां को तो ममता की देवी कहा जाता है। कहा जाता है कि एक मां से ज्यादा अपने बच्चे को कोई और प्यार नहीं कर सकता। एक मां ही है जो अपने बच्चों के बंद होठों की भाषा भी समझ लेती है। परन्तु मेरी मां! वो ऐसी आदर्श मांओं जैसी क्यों नहीं है! मुझे मेरी मां क्यों नहीं समझ पा रही है? उसने मुझे एक बार भी गोद में क्यों नहीं उठाया? वो मुझे फेंकने के लिए कैसे राजी हो गई? मां तुम इतनी निष्ठुर कैसे हो गई? नहीं मां नहीं, मुझे कुछ घंटे और अपने साथ बिताने दो। मुझे इस तरह से मत फेंको..
लेकिन मेरी मां ने मेरी एक ना सुनी। शायद उनके मन में मेरे लिए इतनी घृणा उत्पन्न कर दी गई थी कि मुझे किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, अनाथालय या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर न फेंककर एक ऐसे स्थान पर फेंक दिया जहां से गुजरते हुए भी लोग अपनी नाक भौं सिकोड़ते है। जहां लोगों को अपना रूमाल अपनी नाक पर रखने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जहां लोगों का दम घुटता है। ऐसे कूड़े के ढेर पर मेरी मां ने मुझे निर्ममता से फेंक दिया।
मां! क्या आपको कभी आत्मग्लानि होगी? क्या कभी आपको मेरे दुख का अहसास होगा? मां, मुझे मेरा कसूर तो बता दिया होता।
फिर एक 'छल'। परन्तु यह सब इतना दुखदायी था कि मुझे जीने की ही चाह न रही। मुझे खुद से घृणा होने लगी। मैं और नहीं जीना चाहती थी। मैं उस कूड़े के ढ़ेर पर अकेली पड़ी बिलख रही थी। देखने व सुनने वालों को लगा कि 'बच्ची छोटी है इसलिए रो रही है।' जबकि सच यह था कि मैं खुद पर रो रही थी। परन्तु आज की स्वार्थी दुनिया में कोई किसी के दर्द को नहीं समझता। परन्तु ऐसे में भी अपना समझने वाला कोई था वहां। मोहल्ले के कुछ कुत्ते, जो भोजन की तलाश में वहां आये थे। मुझे देखते ही पांच कुत्तों की उस टोली के मुंह में पानी आ गया। कुछ घंटों का ताजा गोश्त। और फिर बिना एक पल गंवाये वे मुझ पर ऐसे टूट पड़े जैसे कई महीनों से भूखे हों। किसी को मेरा हाथ पसंद आया तो कोई मेरे पैर नोच रहा था। एक कुत्ते को तो मेरी नन्हीं आंखें ही भा गई। कोई मेरे पेट को चीर रहा था। तभी एक कुत्ते की नजर मेरे धड़कते दिल पर पड़ी। चिथड़े-चिथड़े हो गया मेरा वो नन्हा शरीर।
पर मुझे खुशी थी कि मेरे जीवन का मोल कुत्तों ने ही सही पर किसी ने समझा तो। अन्तर सिर्फ इतना होता कि ये वास्तव में कुत्ते थे और बड़े होने पर मुझे 'इंसानी कुत्ते' मिलते। पर परिणाम समान ही होना था। क्योंकि मैं एक लड़की हूं।
पर इस घटना के बाद की हैवानियत पर मुझे हंसी आ रही थी। जी हां, अब तक के गम मेरे लड़की होने के कारण मेरे अपने थे। पर अब मैं जो बताने जा रही हूं वो समाज का गम है। समाज के गिरते स्तर का, लोगों की संकुचित मानसिकता का और समाज के पढ़े लिखे जाहिलों का इससे उम्दा नमूना कुछ और नहीं हो सकता।
मेरे कुछ चिथड़े जिन्हे लेकर समाज के दो वर्ग अपने-अपने हथियार लिए एक दूसरे के सामने तैनात थे। जी हां, यह वही लड़ाई है जिसका जिक्र मैंने कहानी के आरम्भ में किया था। एक नन्हीं बच्ची के चिथड़ों के लिए लड़ाई । मुझे हंसी इस बात के लिए आ रही थी कि जब मैं जीवित थी तब मेरे लिए किसी ने आवाज नहीं उठाई और अब जब मेरे कुछ अंश बचे है तो उनके लिए लड़ाई!
ओह! मैं अपने उस साथी को कैसे भूल गई जिसने मेरा हर पल साथ दिया। जिसके साथ मैं यहां तक पहुंच पाई। 'छल'! आ ही गये न तुम! अब तुम ही बताओ ये सब क्या चल रहा है? अब क्यों लड़ रहे है ये सब मेरे लिए?
छल: 'छल' के साथ रहती हो और 'छल' को नहीं समझ पाई। गलतफहमी है ये तुम्हारी कि कोई तुम 'लड़की' के लिए लड़ रहा है। यहां जो भीड़ है वह दो समुदायों की है। ये तुम्हारे बचे हुए चिथड़ों के लिए लड़ रहे है। एक के अनुसार तुम्हारे चिथड़े उनके धर्म के है और दूसरे के अनुसार वे उनके मजहब के है। ये लड़ाई तुम्हारे लिए नहीं बल्कि दो सम्प्रदायों की है।
सच कितनी अभागी हो तुम! सच कहूं तो आज मुझे तुमसे ये छल करते हुए भी शर्मिदगी हो रही है। पर सच यही है यहां लड़ाई तुम्हारे लिए नहीं है। और लड़ाई तुम्हारे लिए हो भी कैसे सकती है? क्योंकि तुम तो एक लड़की हो। मैं: सही कहते हो 'छल' तुम। ये लड़ाई मेरे लिए नहीं हो सकती। क्योंकि मैं एक लड़की हूं..

Tuesday 23 June, 2009

sssa

पत्नी (पति से)- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।
पति (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।

पति (पत्नी से)- तुम हमेशा हमसे लड़ाई क्यों करती हो, जब देखो तब नोंक-झोंक करती रहती हो ऐसा क्यों?
पत्नी (पति से)- हमारी मुलाकात ही वाद-विवाद प्रतियोगिता से हुई थी । तो उसे कायम रखना ही था।

प्रेमी (प्रेमिका से)- डाfर्लग मैं तुमसे शादी नही कर सकता घरवाले मना कर रहे हैं।
प्रेमिका- तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?
प्रेमी- एक बीवी और तीन बच्चे...

राम और श्याम कब्रिस्तान में बैठकर बातें कर रहे थे।
राम- श्याम, देखो ये मुर्दे कितने आराम से अपनी कब्रों में सोते हैं।
ये सुनते ही॥ सारे मुर्दे उठ खड़े हुए और बोले- क्यूं ना सोएं ये जगह हमने अपनी जान देकर हासिल की है..!

एक कैदी (दूसरे कैदी से)-क्या तुम्हारे कोई रिश्तेदार नहीं हैं, कभी मिलने नहीं आते?
दुसरा कैदी (पहले कैदी से)बहुत हैं, पर सभी इसी जेल में है।

एक ही दिन कुत्ता और पत्नी दोनों के बीमार होने पर रमेश दोनों के लिए दवा खरीदने गया,बीमारी बताने के बाद दुकानदार ने दवा दी।
दुकानदार (रमेश से)- ये लीजिए दोनों की दवा।
रमेश (दुकानदार से)- दवाइयों को अलग-अलग लिफाफे में रखकर लिख दो की कौन सी मेरी पत्नी की दवा है और कौन सी कुत्ते की। मैं नहीं चाहता दवाई बदल जाए और मेरे कुत्ते को कुछ हो जाए।

संता (पिता से)- मैने शादी करनी है।
पिता- किससे पुत्तर
संता- दादी से
पिता- बदतमीज वो मेरी मां है
संता- तो आपने मेरी मां से शादी क्यों की॥?

संता धीरे-धीरे कुछ लिख रहा था।
संता (बंता से)- इतने धीरे क्या लिख रहे हो?
बंता (संता से)- अपने सात साल के बेटे पत्र लिख रहा हूं वो अभी छोटा है वो तेज नहीं पढ़ सकता ना।

गरीब मरीज- डॉक्टर साहब मेरे पास पैसे नही हैं आप मेरा इलाज कर दें तो कभी आपके काम आऊंगा।
डॉक्टर- तुम काम क्या करते हो?
मरीज- जी कब्र खोदता हूं।

एक डॉक्टर ने अपनी लाइफ का पहला ऑपरेशन किया! ऑपरेशन के थोड़ी देर बाद ही मरीज मर गया!
मरीज के मरने के बाद डॉक्टर ने दीवार पर टंगी भगवान की तस्वीर की ओर हाथ जोड़कर सिर झुकाते हुए पूरी श्रद्धा के साथ कहा- हे प्रभु मेरी ओर से ये पहली भेंट स्वीकार कीजिए!

पिता (पुत्री से)- मिनी तुम मुझे पहले पापा कहती थी और अब मुझे डैड कहना शुरु कर दिया। क्या वजह है?
मिनी- कम ऑन डैड, पापा कहने से लिपस्टिक खराब हो जाती है।

अध्यापक (छात्र से)- तुम्हारे पापा 5000 रुपये लोन लेते हैं। दस प्रतिशत ब्याज के हिसाब से वो 1 साल बाद लोन वापिस करते हैं। बताओ कितने पैसे वापिस करेंगे?
छात्र - कुछ भी नही।
अध्यापक- तुम इतना भी हिसाब नही जानते।
छात्र- मैं तो हिसाब जानता हूं, पर आप मेरे पापा को नही जानते।

Monday 2 February, 2009

स्वीट हार्ट

तू उठ के रात के १२ बजे , विहस्की रमकी फरियाद न कर
मेरी लुटिया डूब चुकी है ,ऐ इश्क मुझे अब बर्बाद न कर ।

खा के कसमे प्यार की आए यहाँ , गर्दिशों में पेच ढीले हो गए
ढूँढ़ते हम फ़िर हैं नौकरी ,और उनके हाथ पीले हो गए।

लड़की कहाँ से लायूं मैं शादी के वास्ते ,शायद की इसमें मेरे मुकद्दर का दोस्त है,
अजरा,नसीम ,सना ओ सबा भी गई, एक शमा रह गई है वो भी खामोश है।

अर्ज किया है -----------
काश तेरे चेहरे पर चेचक के दाग होते
काश तेरे चेहरे पर चेचक के दाग होते
चाँद तो तू है ही ,सितारे भी साथ होते।
जगदीप गोस्वामी

Wednesday 21 January, 2009

आशिक

आशिक कभी मरते नहीं , जिन्दा दफनाये जाते हैं।
कब्र खोदकर देखो तो, महबूबा के इंतजार मैं पाए जाते हैं।
मुहब्बत के दुश्मन कहते हैं ,की इन्हें जलादों दफ्नादो ।
मगर कोई यों नही कहता कि इसे इसकी महबूबा से मिलादो .

(जगदीप गोस्वामी)

Tuesday 20 January, 2009

मुहब्बत करना किसी के बस में नहीं होता ,
किसी को यादकरके कोई यूं ही नहीं रोता
मिलते हैं बिछ्ढ़ते हैं लाखों चेहरे हर रोज
हर किसी को कोई यादों में नहीं संजोता
हम आपको याद करते हैं , कारन हमें नहीं पता
कब होगा फ़िर से दीदार कहाँ कब बता
सोचता हूँ आज भी ये सब कैसे हुआ
इसमें किसका था दोष और किसकी थी खता
[मुनीश शर्मा]

Yaden

मासूम सी नजर थी ,चेहरा गुलाब था ।
आँखों मैं शायरी थी ,हुस्न लाजबाब था
करती थी सितम मुझ पर ,उसकी हर एक अदा ।
मुस्कान थी निराली , न कोई जबाब था ।
मासूम सी नजर थी -------
अंगडीयां थी लेती तो सिहरन सी दौड़ जाती ,
वो नूर था गुलशन का या कोई शबाव था।
मासूम सी नजर थी -------
(जगदीप गोस्वामी )

Mulakat

समेट्लो सितारों को हाथों में अपने , बहुत दूर तक रात ही रात होगी ।
हम भी मुसाफिर हैं तुम भी मुसाफिर हो ,कही न कही फ़िर मुलाकात होगी .

(जगदीप गोस्वामी )